शुक्रवार, 30 मई 2025

गीत 91 : चंदन वन की शीतल मंद सुगंध हवाएँ

 गीत 91: चंदन वन की शीतल मंद सुगंध हवाएँ


चंदन वन की शीतल मंद सुगन्ध हवाएँ
वातायन तक आती हैं तो आने दो ।

        उपवन उपवन फूल खिलेंगे हर घर में
        सत्कर्मों सदभावों से जब सीचोंगे ।
        फिर बसंत हरियाली लेकर आएगा
        जब नफ़रत के बीज नहीं तुम बोओगे।

 
नील गगन में  मुक्त कंठ से सोन चिरैया
गीत प्रेम का गाती है तो गाने दो ।

        हर मन में इक प्यास अधूरी रहती है
        जीने को मिल जाता एक सहारा है ।
        आजीवन बेचैन रहा करता है मन 
        ढूँढा करता अपना एक किनारा है ।

मत रोको इन  चंचल बहती नदियों को तुम
सागर से मिलने को जाती, जाने दो ।

        आज नही तो कल मौसम बदलेगा ही
        सूरज की किरणे प्राची से  निकलेंगी 
        छँटना है दुख का अँधियारा, सत्त्य यही
        नई हवा से नई फ़िज़ाएँ बदलेंगी ।


आसमान को नापेंगे ज़ाँबाज परिंदे
उड़ने को तैयार, इन्हें उड़ जाने दो ।

-आनन्द.पाठक-


मंगलवार, 27 मई 2025

-एक सूचना-

  -एक सूचना-

मित्रो !

आप लोगों के आशीर्वाद और स्नेह से , मैने 2- यू-ट्यूब चैनेल बनाए हैं। अब तक आप लोगों ने इस मंच पर मेरी काफी रचनाएँ-जैसे गीत ग़ज़लमाहिए-दोहे-कविताएं और व्यंग्य -पढ़ीं और उत्साहवर्धन किया । अब इन्ही रचनाओं का स्वर पाठ, वाचन मेरे चैनेल पर सुनें और आशीर्वाद दें

चूँकि यह मेरे ’एकल और प्रथम प्रयास है-प्रोफ़ेसनलिज्म न मिले । इस प्रयास में बहुत सी कमियाँ भी होंगी ,आशा करता हूँ कि इसमे उत्त्तरोत्तर सुधार होता जाएगा । आप इसे सब्सक्राइब, लाइक और शेयर करें ।


[1] आवाज़ का सफ़र :

www.youtube.com/@akpathak3107

इसमें मेरी काव्यात्मक रचनाऒं [गीत-ग़ज़ल-माहिए-कविताओ आदि] का स्वर पाठ होगा। आप लय-स्वर-सुर पर ध्यान न दीजिएगा-बस भाव पर  ध्यान दीजिएगा


[2] मुखौटे ही मुखौटे :

www.youtube.com/@akp31755

इसमें मेरी व्यंग्य रचनाओं का वाचन होगा ।

आप की शुभ कामनाओं का आकांक्षी--

सादर 

-आनन्द.पाठक-



शनिवार, 3 मई 2025

अनुभूतियाँ 182/69

 अनुभूतियाँ 182/69

:1:
नाम तुम्हारा ले कर कोई
ढोंगी बाबा भरमाता है ।
शायद उसको पता नहीं है
मेरा तुम से क्या नाता है ।

:2:
रात भले हो जितनी लम्बी
सूरज को फिर उगना ही है।
आशा की किरणें उतरेंगी
घना अँधेरा छँटना ही है ।

:3:
युद्ध स्वयं ही लड़ना पड़ता
अपने बल पर, अपने दम पर
जीत उसी को हासिल होती
जो रहता है सत्य, धरम पर ।

:4:
जिस दिन तुम से बात न होती
वो दिन फिर बेगाना लगता 
मन खोया खोया सा रहता
अपना घर अनजाना लगता ।